ना खता थी
ना खता थी लड़की की
जो गले लगाया मोहब्ब्त को
सब कुछ भुला कर सच करना चाहा सपनो को
अपनों को अकेले कर
किसी अकेले की हो जाना ठीक नहीं
ये ख्याल हुआ देरी से
जैसे कुरेदा गया हो जख्मों को
इस बेहाली में किया ऐसा उसने जो
अच्छा ना लगा जमाने को
पैमानों को कहाँ समझ आया दर्द उसके अपनों का
जो अपनी उम्र फिरते थे उसकी उम्र में रमाने को।
जो गले लगाया मोहब्ब्त को
सब कुछ भुला कर सच करना चाहा सपनो को
अपनों को अकेले कर
किसी अकेले की हो जाना ठीक नहीं
ये ख्याल हुआ देरी से
जैसे कुरेदा गया हो जख्मों को
इस बेहाली में किया ऐसा उसने जो
अच्छा ना लगा जमाने को
पैमानों को कहाँ समझ आया दर्द उसके अपनों का
जो अपनी उम्र फिरते थे उसकी उम्र में रमाने को।
ना खता थी
Reviewed by Amar Nain
on
10/06/2018
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